मंगलवार, 12 जुलाई 2011

चन्द्रवदनी कि ओर

तिनकों से 
नदी ने प्रवाह को 
रोकने कि बात पर 
झटपट 
कुछ गडगडाती 
छायाएँ 
ढक लेती मुझे 
कौने - कौने से 
हजारों पैर
चले आते 
बे - परवाह 
भूख के अंदाजों को 
पीछे छोड़ 
चन्द्रवदनी कि ओर 
जहाँ 
धूप, बादल , हवा 
चढाते - लुढ़कते हैं 
आजीवन |

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