शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

दूर की बात

बिना 
उलट - पुलट 
सूरज भी 
धीरे से 
स्वीकार लेता 
वह सत्य 
जिससे आँखे मूंद लेते हम 
सहज सरोकार है 
उसका 
हमारा अनुराग तो 
यदाकदा वाला ही 
न रहने पर 
कभी स्पष्ट नहीं रहने जैसा 
स्वीकारना तो उसे 
जैसे 
दूर की बात |

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