शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

सपनों की अन्तर्वार्ता

स्मृतियों के आवाहन में 
अचेतन मन 
स्वयं ही 
कितना कुछ रचता है 
 
सपनों की अन्तर्वार्ता 
यथासंभव अभिव्यक्ति का  
माध्यम खोजती है 
आश्चर्य और कृतज्ञता संग 
 
वह जन्मजात 
निरंतर 

अपनी स्वाभाविक लय में 
जाग्रति का स्वप्न 
और स्वप्न की  
सुषुप्ति होने के 
पड़ाव को पाता है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें