दृश्य कलाओं विशेषकर चित्र और शिल्प की विधा में काम करने वाले हम सभी कलाकारों के अपने-अपने अन्दाज-ऐ-बयां के तरीकों को लेकर अमूमन बहस हुआ करती है, जिसमें सही-गलत, प्रामाणिक-अप्रामाणिकता का मुद्दा अक्सर गरमाया रहता है, स्टाइल और फॉर्म के अभिन्न अंतर को लेकर आपसी चर्चाएं भी होती हैं, जहाँ हमेशा ही सम्बंधित विषय पर एक दूसरे के विचारों से असहमति बनी रहती है, जिसकी गति हमेशा ही अत्यंत सुन्दर होती आयी है, निश्चित तौर पर इस पूरे क्रम के माध्यम से कलाकार के मन में एक नयी रचना का जन्म होता है, आत्मविश्वास से भरे विचारों में पककर निकली रचना जिसका अपना एक मनो-भव है ।
सोमवार, 20 जुलाई 2015
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