पत्थर होना क्या
होता
जानता है
सहना थाती जो उसकी
बे-ज़ुबान नहीं है वह
कहनी आती अपनी कथा
उसे भी
लगाने आते दर्जनों
दशमलव
सुना सकता बे-परवाह
तुम्हारे-सी कोई कविता,
कहानी
न आलिम न फ़ाज़िल
पीढ़ी दर पीढ़ी
पत्थर है वह
सहना थाती जो उसकी |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें