बुधवार, 15 अप्रैल 2009

वैसे ही जैसे

वैसे ही जैसे
शब्द
आँच में पककर
सौ सौ फल फलता,
वैसे ही जैसे
कोई स्वतंत्र एकांत
टूटी समाधि के पार
स्वर संग
धवलतर विस्वसनीय लगता,
वैसे ही जैसे
इक छोटा सा स्वप्न
पतली डोरियों से
ऊँची लहरें बांधता,
गुनगुनाता,
सुनाने लगता ईश्वर की बात,
वैसे ही जैसे
खो जाता कोई
रोशनाई की
रूहानी
रेखाओं में ।

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