शनिवार, 11 जून 2011

यूँ ही

ले जाएगा 
वहाँ तक
जहाँ मिथ्या 
लगने लगती 
उपाधियाँ सारी
किसी भारमुक्त 
पंछी की तरह 
उन संख्याओं को 
पीछे हटाकर 
क्या 
तैयार हो तुम 
अपने देवता बदलने को 
या फिर 
बाँधोगे सीमाओं में 
बोध की उस 
अनावश्यक यथार्थ को 
यूँ ही | 

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