गुरुवार, 1 नवंबर 2012

भली - भली सी इक रात

अधूरे की
अपनी ही धुरी होती है
होता है उसका आकाश भी 
अधुरा स्वयं को निगलता  
निपजता उस पूरे को 
जहाँ स्मृतियों की आकृतियाँ है 
सिरहाने से फिसलकर 
सुबह को लपकती
भली - भली सी इक 
रात है ।

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