शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

कुछ होता ऐसा


क्या सब कुछ निजी होता है,
कुछ होता ऐसा भी
जो सब का हो
हवा सबके लिए होती है, 
कुदरत का पानी, रौशनी सूरज की, गहरी रात के तारे 
सुख और दुःख 
कितना अच्छा होता 
अगर खेत सब के होते,  अनाज़ से रोटी और मिलता हर हाथ को काम 
गाँव के चरागाह और पुरखों के ज्ञान - सा सबका
सवेरा  
होती है जैसे सबकी 
शामलात 
दुनिया शामलात होती तो 
क्या होता 
नहीं होता बहुत कुछ 
निश्चित ही इतिहास नहीं
इतिहास तो कभी नहीं |

1 टिप्पणी:

  1. प्रियवर,


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