शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

लिखना सिखलाते हैं

डूबो-डूबो कर
खाली पन्नों को
काली स्याही में
सपने
कुछ
लिखना
सिखलाते हैं
भाग-भाग कर
कितना थका था  
खिसकती रेत में
धसक गए
पग मेरे
सपने
खडा करते हैं
थमा देते
महानिद्रा में
चमकीले
अक्षर बिम्ब 

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