चिरंतन
श्यामल
इतनी आकर्षक
कल्पनाओं से अधिक शक्तिशाली
ह्मूनसांग कि आस्था सी
क्या
यही होती
अविद्या पर विजय,
पारदर्शी पर्वतीय श्रंखलाएं
इक ब इक
सवालिया निशान गढ़ती हैं,
खड़े- खड़े खोल
अपनी गठरी
समतल अग्नि को
धधकाती
प्रवाहमान तरुणाई भी
अनगिनत पुष्पों में
डुबकियाँ लगा
एहतियातन
उस
समरूप
कलंदर के
कलेवर
देखती है
चिरंतन
श्यामल
सोमवार, 14 सितंबर 2009
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