शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

कैसी दुविधा

कैसी दुविधा
बुदबुदाता
छूना चाहता है
बेआवाज़ ही रख देता
हर रंग हर कहानी
कैसा
अकेला ही पाता
ऋत पर विजय
वैसे भी
किसे देखती
अन्दरुनी निगाहें
तह पर तह जमती जाती
सच
आग है निर्वसन
हाथ जोड़े , हिचकोले खाता
संगेमरमर पर
फिसलता है
यहाँ वहाँ के खेलों के बीच
कभी छू लेता
आकाशीय चेतस वर्षा 
अक्षीय बंध संग
कैसी दुविधा

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