मंगलवार, 15 सितंबर 2009

कोयले सा

कितनी आँखों से
देखा
अतीत
ठोस मायाजाल
कोई और है
समय सा
स्वछन्द
अर्थ सा
अहर्निश गतिशील
निरुद्देश्य ही नहीं
बहती नदी
तराशती शब्द
स्वेदकण सी
अवचेतन
भावशून्य
बनाता है निमित्त
महज़ एक है
जो लेता सन्यास
कोयले सा

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