यकीनन
उर्ध्वगमन,
जन्मों-जन्मों से
निराहार
दिगंबर सा
इनकार नहीं करता
नरगिसी आभा में
कचनारों के पार
बारीक़ हुनर उन
कौंधती बिजलिओं से
चिंगारियाँ चुरा
अवसादों को स्वाहा करता है
वहीं
कठोर कवच में लेटा
बूढा कारतूस
सहज सिंगार कर
चिर स्थायी अम्बुज का
अन्तराल नापता
यकीनन
जन्मों-जन्मों से
वैसा ही
उर्ध्वगमन
शनिवार, 12 सितंबर 2009
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