गुरुवार, 24 सितंबर 2009

कुछ दाने मकई के


अब क्या
कहना  उससे
जो भूल चुका
अब तो
बैठा रहता है
इबादतखाने में
बुलाता
अपने खुदा को
बिखेर
कुछ दाने   
मकई के

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