शनिवार, 26 सितंबर 2009

काला कौवा

काला कौवा
सूरज का
टुकडा पकडे
नई देह धरता
इतिहास की
सवारी कर
स्वांस स्वांस
स्वर्ण द्वीपों पर बैठे
पुरखों की अंजुलिओं को
गुडधानी से भरता है

काला कौवा
खोज लेता
हज़ार हाथियों पर
सवार अपने
आकाश को
गढ़ता
नक्षत्रीय गलियारे
बहुधा छानता
मीठी धूप
उड़ा देता
चौबाई हवाएं

काला कौवा
जाडों को बुनता
आँखों में जन्मे
जलावर्त को
पोखर में छोड़
बन जाता 
स्वयं उसका
परिकर
काला कौवा
तपते सूरज को
डूबों डूबों कर
ठण्डा करता है

3 टिप्‍पणियां:

  1. काला कौवा
    तपते सूरज को
    डूबों डूबों कर
    ठण्डा करता है
    bahut hi shaandar lay v sahaj sabdon ki yukti se prasfutit ye kavita wakai achi ban gayi hai
    sadhwad
    wah amit

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  2. अमित जी वाह लिखा है। आपकी लेखनी में बहुत गहराई होती है जी। कैसे सोच लेते है आप जरा हमें भी बता दीजिए।

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  3. ये बर्ड वेरिफिकेशन हटा दीजिए जी।

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