पीड पुराणी
माथापच्ची कर
वैकुंट कि यात्रा कर आते हैं
सिलखडी पर कोर देते
मंत्रयोग
पंच से पंच का तात्पर्य
सिद्धांतों के संदेहों से पार
बांटकर सुनहरे बीज
दत्तचित्त हो
अंग और अंगी का
भेद बताते हैं,
कौन बडभागी
ब्रह्मज्ञान कि बात करता
गुदगुदाता
ज्वारभाटों को
विरह के बाणों को
नयनों में समा लेता,
आकाश पर मेघ ,
पृथ्वी पर जल ,
रहंट पर
कौतूहल
बिखेर देता,
अखंड ध्यान
लयलीन
अपने ही
साहिब में
पाता है
खोजता
पीड पुराणी
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