शनिवार, 12 सितंबर 2009

चित्ररथा के स्वप्न सा

परस्पर
प्रकृतिस्थ,
कभी
गहरे नीले रंग का
कल्पनालोक,
कभी
सूर्ख़ पीत तंत्र,
चित्ररथा के स्वप्न सा
सम्पूर्ण संभावित
एकाधिकार,
अपने ही
गर्भ को भेदकर
निर्मायक 
उल्काओं सा प्रभामय
सुलोचनिय पिंड,
धवल रेखाओं में
काले त्रिबुज पर टिका
महावल के रंग में रंगा
दो चहरों वाला
जिस्म
खोजता है,
परस्पर

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