रह - रह कर
गुज़र जाता
सहसा
वर सुंदरी के स्वप्न सा
सब कुछ
भीतर ही भीतर
आखिर किसे
निर्बन्ध करती
स्वर्णमणि की परछाईं
पहचानता कौन
उपासनाओं को
बारम्बार कहता बुनता
रंगबिरंगा ताना-बाना
किसकी खातिर
अहाते तक रख्खे जाते कदम
किसके लिए
दोहराये जाते मंदस्वर
किसके माथे मढा जाता
एकांतिक आलिंगन
नहीं पकड़ में आता
रह रह कर गुज़र जाता
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