उसी आभा के
इर्दगिर्द
कभी पानी,
कभी कागज़,
कभी आलाम्बित,
कभी आश्वस्थ,
कभी अधर में तैरता
तो
कभी देवताओं के स्वप्न खेवता है,
किसी आज़माये नुस्खें सा
यहाँ वहाँ का उजाला
बटोर लेता,
परमपुरुष पुष्पदंत
कुछ खास अर्थों के साथ
तिनका तिनका
शून्यता का व्यूह बिलोह
विमोहित सृष्टि के
आदिम रिवाजों पर
नसीहत फरमाते हैं
हथेली भर धूप ले
महानिद्रा की
प्यास
बुझाते हैं
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
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