रविवार, 13 सितंबर 2009

कभी कम कभी ज्यादा

कितनी
लम्बी होती जाती
तिरते स्वप्नों कि
छायाँ
अकारण ही नहीं
ख़बरदार करता है,
आसमान का टुकडा
तितली सा
अर्थ बदल,
गर्भ के अहाते तक
देख सकता
आकार
 भव का
कभी कम
कभी ज्यादा

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