कौन करेगा
जबीसाई
कब कहेगा
मेघ शब्द
यशोगान
इत्मीनान से
तेज़ करनी है
लौ
मशालों की
आप परिचित दृश्यों के साथ
समा जाना है
रे़त के समुद्र में
बहुश
बेमानी लगता
अपने अस्तित्व से अलग होना
मंडराती खामोशी में
धसते पगों के साथ
लम्बी-लम्बी ढलानों से
गुजरना
स्निग्ध चांदनी भी
जहाँ
चूभती है
नुकीले तीरों सी
इत्मीनान से
शनिवार, 12 सितंबर 2009
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